Wednesday, July 1, 2015

मानव तस्करी (Human trafficking)और हम

Human trafficking ऐसी चीज है जिस के बारे में ज्यादातर लोग थोडा बहुत ही जानते है। ये सारा खेल पर्दे के पीछे का है। इस में अलग अलग कई टीम काम करती है जो एक दूसरे के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं रखते। इस की मुख़्य वजह ये है की अगर कभी कोइ पकड़ा भी जाए तो पुरे गैंग का पर्दाफाश न हो सके। पर ये सब होता कैसे है? आईये में आपको एक सच्ची घटना बताता हु।
आसाम के एक छोटे से शहर में एक औरत अपनी छोटी सी बच्ची के साथ रहती थी, नाम था दिव्या। दिव्या के पति की 2 साल पहले की एक रोड अकस्मात में मृत्यु हो गयी थी। वो अपना गुजरान दुसरो के घरकाम करके कर रही थी।
एक दिन अचानक से दिव्या को दिल्ली से एक कॉल आता है। सामने वाली औरत अपना परिचय शिखा के नाम से देती है और दिव्या को एक जॉब ऑफर करती है। दिव्या ये ऑफर सुन के काफी खुश हो जाती है और जॉब के लिए हा बोल देती है। ऑफर ही कुछ ऐसी थी! दिल्ली के एक बड़े मोल में काम करना था और पगार था 25000 रुपए। वो तो बस अपने और अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य के बारे में सोच कर ही खुश हो गयी। मानो बस अब दुःख के दिन चले गए।
दिव्या के पड़ोस में अंकिता नाम की एक छोटी लड़की रहती थी। अभी 9वीं कक्षा में पढती थी, पर यकीन मानिए काफी होशियार थी अंकिता। तभी तो उसने जब सुना की दिव्या आंटी को इस तरह का जॉब ऑफर किया है तो उसे थोडा अजीब लगा। वो तो सीधे पहोंच गयी दिव्या के पास।
'आंटी सायद आपसे कोइ मजाक कर रहा है या फिर आपको फसा रहा है' अंकिता ने दिव्या को अपनी चिंता जताते हुए कहा। दिव्या को लगा सायद ये सब लोग से देखा नहीं जाता। और दिव्या ने अंकिता की बातो पे गौर नहीं किया।
पर अंकिता कहा हार मानाने वाली थी। वो तो पहोंच गयी सीधे पुलिस स्टेशन। वहा की महिला अधिकारी को अंकिता ने पूरा मामला समजाया और पूरी बात बताई। पुलिस को पूरी बात समजते ज्यादा देर नहीं लगी। मामले की गंभीरता को देखते हुए, उस पुलिस अधिकारी ने तुरंत दिव्या से घर जाकर बात की। अब दिव्या को मामले की गंभीरता समज में आई।
आगे जाकर पुलिस पूरा प्लान बनाती है इस गिरोह को पकड़ने का। लेकिन हाथ में सिर्फ कुछ लोकल सप्लायर ही आते है जो इस तरह की लड़कियो को दिल्ली पहुचाने का काम करते है। और वहा से उसे बेच दिया जाता है।
ये लोग काफी शातिर होते है। दिल्ली वाले मुख्य आरोपी पुलिस के हाथ नहीं लगते। जब पुलिस लोकेशन ट्रेस करके रेड करती है तब वहा उसे कुछ नहीं मिलता। वो लोग पहले ही वो जगह छोड़कर जा चुके होते है।
इस पुरे मामले में एक छोटी सी बच्ची अंकिता की जागरूकता काम आई। वरना जरा सोचिए, दिव्या को न जाने कैसी परिस्थिति से गुजरना पड़ता।
इस तरह के ज्यादातर मामलो में ये गिरोह का शिकारहै, गरीब राज्यो की वो लडकिया होती है जो नोकरी की तलाश में होती है। और सैलरी भी इतनी बड़ी ऑफर करते है की सामने वाले की सोचने की समज ही काम न करे।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग भारत की ऐसी समस्या है जिस पर अभी तक लोग इतना गंभीर नहीं है जितना होना चाहिए। क्या है न हमारी सोच ही कुछ ऐसी हो गई है। जबतक कोई समस्या हमसे नहीं टकराती, हमारे पेट का पानी भी नहीं हिलता। सोचिये अग़र वो बच्ची हिम्मत करके पुलिस स्टेशन नहीं गयी होती तो दिव्या की जिंदगी कैसे तबाह हो जाती।
रोज हजारो बच्चों का अपहरण होता है। जिसे या तो बेच दिया जाता या फिर भिक्षावृति में लगा दिया जाता है। एक पूरा रेकेट भिक्षावृति के धंधे में लगा हुआ है।
जरुरत है थोड़ी सतर्कता की। हमारे आसपास थोडा देखने की। काफी कुछ बदला जा सकता है। चलो शरुआत अपने पास कोई बच्चा भीख मांगने आता है तो उससे करे। बस थोड़ी सी पुछपरछ, और कुछ भी गलत लगे तो पुलिस को बताए। काफी कुछ जाने हम बचा सकते है।
जय हिन्द।

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