Monday, July 27, 2015

Gurudaspur attack: as it happens

Punjab के Gurudaspur में Terrorist attack हुआ। पहले पुरी घटना का घटनाक्रम जान लीजिए।

5:10 AM आतंकी एक Maruti 200 पर हमला करते है और चालक को वही सड़क पर छोड़ कर कार लेकर निकल जाते है।

5:25 AM एक बस पर हमला करते हुए आगे निकल जाते है।

5:45 AM Gurudaspur के Dinanagar थाने में गोलिया चलाते हुए घुस जाते है। और वह मौजूद पुलिसकर्मी को अपना निशाना बनाते है और वहा मौजूद दो अपराधी को भी गोली मार देते है।

6:10 AM पुलिस Dinanagar थाने को घेर लेते है और जवाबी कारवाही करते है।

11:00 AM संसद की कार्यवाही आज भी बार बार स्थगित हो रही है। कोइ फर्क नहीं पड़ता विपक्ष को इस आतंकी हमले का। और बड़े दुर्भाग्य की बात ये है की विपक्ष चाहता है की कारवाही की पूरी रिपोर्टिंग संसद में हो। अरे भाई आप कुछ कर नहीं सकते तो कम से कम आतंकियो की मदद हो जाये ऐसा तो कुछ मत करिए।

11:50 AM Lalu prasad yadav का बयान आता है की ये हमला मोदी सरकार पर हुआ है। गजब है ना!

1:00 PM Yakub Meman की सुनवाय सुप्रीम कोर्ट में कल तक के लिए ताल दी जाती है।

2:30 PM ज्यादातर न्यूज़ चेनल्स पे सास बहु की साजिस वाली कहानिया सुरु हो जाती है।

3:00 PM वो कांग्रेस जो अब तक कई सालो तक शासन में थी, हाथ में पुतला लिए दिल्ली में प्रदशन कर रही है।

और इन सब कवरेज के बिच में Arvind Kejriwal की वो 520 कारोड़ वाली आवाज गूंजती रहती है।

इन सब के बिच एक चीज हमें पॉजिटिव लगी की कोइ भी न्यूज़ चैनल्स ने इस घटना के लाइव विज़ुअल नहीं दिखाए, क्योकि वो एक बार यह गलती मुम्बई हमले के वक्त कर चुके थे।

ऊपर का पूरा घटनाक्रम बहोत कुछ कह जाता है।
जय हिन्द।

Sunday, July 19, 2015

Minaxi case in Delhi

Delhi में Minaxi नाम की लड़की को सरेआम, दिन के उजाले में दो भाई और उनकी माँ ने मिलकर मार डाला। हैरान और सोचने पर मजबूर करने वाली बात थी की Minaxi पर एक दो या पांच परब नहीं बल्कि 35 बार छुरी का वार किया था। लोग बस ऐसे देख रहे थे मानो उन्हें कुछ परवा ही न हो। शर्म आती है की वहा एक भी बचाने वाला नहीं मिला।

दर्द तो तब और भी बढ़ जाता है जब प्रदशन करने सेकड़ो लोग पहोंच जाते है। किसके खिलाफ प्रदशन कर रहे हो अरे बुजदिलो? शर्म आनी चाहिए ऐसे प्रदशन करते वक्त। अपने भीतर जाको जरा। भीड़ का हिसा बनाकर, पुलिस के पानी के प्रहार के सामने टिककर अपने आप को बहादुर समाज रहे है कुछ लोग। यही बहादुर पता नहीं किस बिल में छुप जाते है पता नहीं।

यही नहीं जब वो तीनो अपराधी Minaxi को मार रहे थे तब वो बचने के लिए एक घर में घुस गयी। उस घरवालो ने तो उसे लात मारकर निकाल दिया और मोत के मुख में धकेल दिया। मेरा तो मानना है की तीनो अपराधी के साथ साथ उन सभी को भी इस केस में अपराधी बनाना चाहिए।

माफ़ करना पर वो लोग जो अलग राजनीती की बात कर रहे थे आज वो ये कह कर दिल्ली पुलिस पर कब्जा चाहते है की हम दिल्ली पुलिस को सुधार देंगे। अरे भाई आप तो पॉलटिक्स में भी कुछ सुधर ने के लिए ही तो आए थे। अब आपके बयान भी शीला दीक्षित की तरह हो गए है। करना है तो एक काम करिए Arvindji अपने कार्यकर्ताओ को कहिए की ऐसे अपराध के समय उनका समाना करके दिखाए। बहोत देख लिए आपके धरने प्रदशन। और यही बात Congress और BJP भी समाज जाए तो अच्छा है।
मुझे लगता है इस देश में तब तक अपराध कम नहीं होंगे जब तक हमारी भीड़ वीर प्रजा बहादुर न बन जाए। आखिर में एक छोटी सी कहानी जो बहोत कुछ कहती है।

Germany में जब Hitler का राज था तब एक यहूदी के गांव में रोज हिटलर के सैनिक जाते और कुछ लोगों को मार डालते। एक यहूदी ये सब रोज देखता था और ये सोचकर खुश होता था की वो और उनका परिवार बिलकुल सुरक्षित है। एक दिन Hitler के सैनिक आते है और इस महासय को मारने के लिए उठाते है। वो काफी चिलता है की कोइ उसकी मदद कर दे। पर अफसोस कोइ नहीं आता।

जय हिन्द।

Sunday, July 12, 2015

Mission of Mosad

बस कुछ दिनों पहले की ही बात है। Pakistan के रक्षा मंत्री खवाजा आसिफ का बयान आया की वो nuclear weapons का कभी भी इस्तेमाल कर सकते है। 'मरता क्या नहीं करता?' इस उक्ति को वो यथार्थ ठहरा रहे है। हमें सचेत रहने की जरुरत है, क्यों की उनका निशाना हिंदुस्तान की तरफ ही था।
यु तो हमें काफी पहले ही Pakistan के nuclear program पे लगाम लगाने की जरुरत थी। तो फिर हमें ऐसे बयान सुनने की नोबत नहीं आती। पर क्या ये संभव है? हा, बिलकुल संभव है। दुश्मन को जन्म से पहेले ही दफना देना कोई Israel से सीखे! चलो पुरे सिलसिलेवार तरीके से जानते है पूरी कहानी।
ये पूरी कहानी Israel के उन पराक्रमो की है, जिसकी वजह से Iran अभी तक nuclear weapons नहीं बना पाया। साल 1988 से सुरु हुआ उसका सपना आज 2015 में भी बस एक ख्वाब ही है।
Iran को nuclear weapons बनाने की जरुरत क्यों पड़ी? उसका जवाब है साल 1980 में सुरु हुआ Iran-Iraq war। जो करीब 8 साल तक चला। लाखो लोग और सिपाही दोनों ओर से मारे गए। पर Iran को नुकसान ज्यादा हुआ था, क्योकि सदाम हुसेन की सेना ने रासायनिक हथियारों का इस्तमाल किया था।
उस समय तक nuclear weapons को इस्लाम विरोधी मानने वाले और परोक्ष तरीके से Iran में शासन चलाने वाले Ayatollah khomeini को लगा की दुश्मन को डराने के लिए nuclear weapons आवश्यक है। ये साल था 1988। उसी साल आयातोल्लाह ने फतवा जारी करके कहा की nuclear weapons को इस्लाम विरोधी नहीं माना जायेगा।
उसके ठीक एक साल बाद Ayatollah की सन् 1989 में मोत हो गई। और यही वो साल था जब साम्यवाद के अतिरेक के चलते रशिया टूट गया। इसी समय इसारयल की जासूसी संस्था Mossad को खबर मिली की रशिया के बेकार हुए साइंटिस्ट और nuclear weapons पे Iran की नजर है। इसी लिए Israel सचेत हो गया, क्योकि उसे Iran की तरफ से कई बार धमकिया मिल चुकी थी। Iran के लिए अमेरिका और Israel दुश्मनो की सूचि में सबसे ऊपर थे। जाहिर है अगर Iran nuclear weapons बना ले या तो किसी भी तरह से हासिल कर ले तो फिर उसका निशाना इसारयल ही होगा।
उसी कालखंड में दुबई में एक मीटिंग होती है। जिसमे तीन ईरानी और तीन यूरोपीय परमाणु विज्ञानी के आलावा दो पाकिस्तानी भी शामिल थे। यह मीटिंग Iran के nuclear weapons के सपने को एक कदम आगे ले गयी।
उन दो पाकिस्तानी में से एक का नाम था डॉ. अब्दुल कादिर खान। Pakistan के nuclear weapons के पितामह! सौदा यह तय हुआ था की Iran को रुपए के बदले में nuclear weapons की ब्लूप्रिंट दी जाए।
nuclear weapons में इस्तमाल के लिए Uranium-235 की जरुरत होती है। Uranium-235 दुर्लभ है और इसे Uranium-238 में से बनाया जा सकता है। कुदरत से मिलने वाला Uranium-238 का Uranium-235 में रूपांतर करने के लिए जो चीज इस्तमाल होती है उसे centrifuge कहते है। centrifuge नलाकार आकार में होता है। जिसकी भीतर की धरी प्रति मिनिट लगभग 100000 चक्कर लगा के केंद्रत्यागी बल पैदा करते है। जिससे वजन में भारी Uranium-238 और Uranium-235 अलग हो जाते है।
ये centrifuge की ब्लूप्रिंट डॉ. खान ने उस वक्त चुराई थी, जब वो यूरोपियन कंपनी यूरेको में 70 के दसक में काम करते थे। इसी के बल पर डॉ. खान ने Pakistan को परमाणु ताकत वाला देश बनाया था।
Iran nuclear weapons बनाने की कोशिश में लगा हुआ था और Israel अपने देश के दुश्मन की इस मुराद को पूरी होने देना नहीं चाहता था। इसी लिए उसने पहला काम उन लोगो को काम तमाम करने का किया जो Iran के nuclear program से जुड़े हुए थे।
तारीख थी 23 नवम्बर, 2010 और सुबह का समय था। Iran की राजधानी Tehran में डॉ. मजीद शहरयारी अपनी कार में जा रहे थे। साथ में उनकी पत्नी भी बेठी थी। उसी वक्त पीछे से मोटरबाइक पे हेल्मेट पहने एक सवार कार के पास पहोंच कर, कार की विंडसिल्ड में कुछ लगा देता है। बस थोड़ी देर बाद एक बहोत बड़ा धमाका होता है और डॉ. मजीद की मौके पे ही मोत हो जाती है। उनकी पत्नी बुरी तरह से घायल हो जाती है। डॉ. मजीद Iran के सूचित nuclear weapons के गुप्त कार्यक्रम से जुड़े हुए थे।
बिलकुल इसी तरीके से एक और विज्ञानी डॉ. फेरेदुन अब्बासी को भी कार में बम लगा के मार ने की कोशिश की, लेकिन हो घायल होने के बावजूद बच गए। बाद में उसे Iran का उपप्रमुख भी बनाया गया।
साल 2006, जनवरी में एक पैसेंजर जेट विमान टूट कर गिर गया। उसमे बेठे सारे लोगो की मौत हो गयी। मरने वालो में रिवोल्युसनरि गार्ड के नाम से जाने जनि वाली टुकड़ी के कई सदस्य भी शामिल थे। ये टुकड़ी Iran के nuclear program का कामकाज देखती थी।
इसी साल और दूसरा एक मिलिटरी विमान टूट के गिर गया। उसे आसमान में चढ़े अभी बस कुछ ही मिनिट्स हुयी होगी। उसमे रिवोल्युसनरि गार्ड के 36 जवान मारे गए।
ये सारे पराक्रम Israel की जासूसी एजंसी Mossad के Secret agents के थे। जो कभी पकड़े नहीं गए।
दूसरी और Mossad ने उन देशो में अपनी फर्जी कंपनिया कड़ी कर दी जहा से Iran ब्लैक में nuclear weapons के लिए पुर्जे खरीद रहे थे। और बाद में ऐसे माल की सप्लाई करते की कभी Iran का प्लांट चल ही न पाए।
अप्रैल 2006 के साल में Iran के नातन्झ की घटना है। एक भूगर्भ संकुल में परमाणु विज्ञानी, रिवोल्युसनरि गार्ड के अफसर और कुछ टेक्नीशियन इकठा हुए थे। सब लोग खुश थे क्यों की हजारो की संख्या में रखा हुआ centrifuge का नेटवर्क आज कार्यान्वित होने वाला था। और इस से nuclear weapons के लिए आवश्यक Uranium-235 मिलने वाला था।
जब वहां के चीफ इंजीनियर ने बटन दबाया तो दूसरे ही पल वहा जोर से धमाका हुआ और पुरे centrifuge के प्रोजेक्ट को कबाड़ बना कर रख दिया। इसके चलते अब Iran को Uranium-235 के लिए सरू से सरुआत करने की नोबत आई। इस घटना से पता चलता है की Mossad के जासूस कहा कहा पहोंच सकते है।
Mossad का अगला मिशन तो और भी सनसनीखेज़ था। नातान्झ में हजारो centrifuge का अंडरग्राउंड एकम था जो की साल 2006 में धमाके में तबाह हो चूका था। उस यूनिट को फिर से हजारो centrifuge से बनाया गया था। यहाँ के हजारो centrifuge अपना काम दिन रात कर रहे थे। इन सब centrifuge का नियमन सीमेन्स कंपनी द्वारा बनाया गया कंट्रोल यूनिट कर रहा था। इस कंट्रोल यूनिट का काम centrifuge की गति और उसको मिल रहे पवार सप्लाय का नियमन और नियंत्रण करना था।
इसी कंट्रोल यूनिट को अपना निशाना बनाने के लिए Israel ने एक कम्प्यूटर वायरस बनाया और नाम दिया Stuxnet. ये वायरस इस तरह से बनाया गया था की ये सिर्फ centrifuge के कंट्रोल यूनिट को ही टारगेट करे, ताकि ये बिच में आने वाले कंप्यूटर के एंटीवायरस की नजरो में न आ सके।
कंट्रोल यूनिट का काम हर एक मिली सेकंड का हिसाब रखना था। जेसे ही Stuxnet ने अपना काम सुरु किया तो सबसे पहले उसने centrifuge की गति बढ़ा दी ताकि उसके पुरजे बर्बाद हो जाये और पता भी न चले। थोड़ी देर ये काम करने के बाद अचानक से ये वायरस सुषुप्त हो गया। ठीक 27 दिन बाद ये वायरस फिर से जागा और centrifuge की गति इस बार कम कर दी।
Stuxnet ने ऐसा कई बार किया। जिसका परिणाम ये आया की उस यूनिट के लगभग एक हजार centrifuge बिलकुल बेकार हो गए।
इसारयल के लिए ये सब करना जरुरी है क्यों की उसके अस्तित्व का सवाल है। उत्तर से पश्चिम के हिसाब से 420 किलोमीटर और पश्चिम से पूर्व के हिसाब से 110 किलोमीटर का विस्तार ही Israel के पास है। जाहिर है सिर्फ एक nuclear weapons ही काफी है पुरे देश को तबाह करने के लिए। इसी लीए पुरे जी जान से Mossad जुट हुआ है Iran को परमाणु शक्ति बनने से रोकने के लिए। इसी लिए आज की तारीख तक Iran nuclear weapons नहीं बना पाया, जिसका सपना Iran ने साल 1988 में देखा था।

Wednesday, July 1, 2015

मानव तस्करी (Human trafficking)और हम

Human trafficking ऐसी चीज है जिस के बारे में ज्यादातर लोग थोडा बहुत ही जानते है। ये सारा खेल पर्दे के पीछे का है। इस में अलग अलग कई टीम काम करती है जो एक दूसरे के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं रखते। इस की मुख़्य वजह ये है की अगर कभी कोइ पकड़ा भी जाए तो पुरे गैंग का पर्दाफाश न हो सके। पर ये सब होता कैसे है? आईये में आपको एक सच्ची घटना बताता हु।
आसाम के एक छोटे से शहर में एक औरत अपनी छोटी सी बच्ची के साथ रहती थी, नाम था दिव्या। दिव्या के पति की 2 साल पहले की एक रोड अकस्मात में मृत्यु हो गयी थी। वो अपना गुजरान दुसरो के घरकाम करके कर रही थी।
एक दिन अचानक से दिव्या को दिल्ली से एक कॉल आता है। सामने वाली औरत अपना परिचय शिखा के नाम से देती है और दिव्या को एक जॉब ऑफर करती है। दिव्या ये ऑफर सुन के काफी खुश हो जाती है और जॉब के लिए हा बोल देती है। ऑफर ही कुछ ऐसी थी! दिल्ली के एक बड़े मोल में काम करना था और पगार था 25000 रुपए। वो तो बस अपने और अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य के बारे में सोच कर ही खुश हो गयी। मानो बस अब दुःख के दिन चले गए।
दिव्या के पड़ोस में अंकिता नाम की एक छोटी लड़की रहती थी। अभी 9वीं कक्षा में पढती थी, पर यकीन मानिए काफी होशियार थी अंकिता। तभी तो उसने जब सुना की दिव्या आंटी को इस तरह का जॉब ऑफर किया है तो उसे थोडा अजीब लगा। वो तो सीधे पहोंच गयी दिव्या के पास।
'आंटी सायद आपसे कोइ मजाक कर रहा है या फिर आपको फसा रहा है' अंकिता ने दिव्या को अपनी चिंता जताते हुए कहा। दिव्या को लगा सायद ये सब लोग से देखा नहीं जाता। और दिव्या ने अंकिता की बातो पे गौर नहीं किया।
पर अंकिता कहा हार मानाने वाली थी। वो तो पहोंच गयी सीधे पुलिस स्टेशन। वहा की महिला अधिकारी को अंकिता ने पूरा मामला समजाया और पूरी बात बताई। पुलिस को पूरी बात समजते ज्यादा देर नहीं लगी। मामले की गंभीरता को देखते हुए, उस पुलिस अधिकारी ने तुरंत दिव्या से घर जाकर बात की। अब दिव्या को मामले की गंभीरता समज में आई।
आगे जाकर पुलिस पूरा प्लान बनाती है इस गिरोह को पकड़ने का। लेकिन हाथ में सिर्फ कुछ लोकल सप्लायर ही आते है जो इस तरह की लड़कियो को दिल्ली पहुचाने का काम करते है। और वहा से उसे बेच दिया जाता है।
ये लोग काफी शातिर होते है। दिल्ली वाले मुख्य आरोपी पुलिस के हाथ नहीं लगते। जब पुलिस लोकेशन ट्रेस करके रेड करती है तब वहा उसे कुछ नहीं मिलता। वो लोग पहले ही वो जगह छोड़कर जा चुके होते है।
इस पुरे मामले में एक छोटी सी बच्ची अंकिता की जागरूकता काम आई। वरना जरा सोचिए, दिव्या को न जाने कैसी परिस्थिति से गुजरना पड़ता।
इस तरह के ज्यादातर मामलो में ये गिरोह का शिकारहै, गरीब राज्यो की वो लडकिया होती है जो नोकरी की तलाश में होती है। और सैलरी भी इतनी बड़ी ऑफर करते है की सामने वाले की सोचने की समज ही काम न करे।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग भारत की ऐसी समस्या है जिस पर अभी तक लोग इतना गंभीर नहीं है जितना होना चाहिए। क्या है न हमारी सोच ही कुछ ऐसी हो गई है। जबतक कोई समस्या हमसे नहीं टकराती, हमारे पेट का पानी भी नहीं हिलता। सोचिये अग़र वो बच्ची हिम्मत करके पुलिस स्टेशन नहीं गयी होती तो दिव्या की जिंदगी कैसे तबाह हो जाती।
रोज हजारो बच्चों का अपहरण होता है। जिसे या तो बेच दिया जाता या फिर भिक्षावृति में लगा दिया जाता है। एक पूरा रेकेट भिक्षावृति के धंधे में लगा हुआ है।
जरुरत है थोड़ी सतर्कता की। हमारे आसपास थोडा देखने की। काफी कुछ बदला जा सकता है। चलो शरुआत अपने पास कोई बच्चा भीख मांगने आता है तो उससे करे। बस थोड़ी सी पुछपरछ, और कुछ भी गलत लगे तो पुलिस को बताए। काफी कुछ जाने हम बचा सकते है।
जय हिन्द।