Tuesday, June 30, 2015

भीड़ और उसका अँधा कानून

कहते है भीड़ का दिमाग नहीं होता, पर पिछले कुछ दिनों में जो घटनाए सामने आई है, उससे तो यही लगता है की भीड़ का दिल भी नहीं होता। पता नहीं इतने बेदर्द कैसे हो जाते है ये लोग, की हम फर्क भी न कर पाये के यह इंसानो का झुण्ड है या फिर जानवरो का!

अभी जो एक घटना सामने आई है वो बिहार के नालंदा की है। यहाँ एक स्कुल में दो बच्चों की मोत हो गयी। जैसे ही लोगों को पता चला पहोच गए स्कूल पे। आचार्य से कुछ कहा सुनी होने के बाद भीड़ ने आचार्य को खूब पीटा। डंडे, घुसे, पैर जिसे जो मन में आया हाथ साफ कर लिया। और थोड़ी देर बाद उस आचार्य की मोत हो गयी।

असली कहानी बाद में सुरु होती है। जब दोनों बच्चों का पोस्टमॉर्टम हुआ, तो पता चला की उन दोनो बच्चों की मोत पानी में डुबने से हुयी थी।

ऐसी घटनाए पुरे देश में रोज बरोज घटती होगी पर कुछ ही सामने आती है। पता नहीं हमारे देश के लोगो को क्या हो गया है। जहा बहादुरी दिखाने की जरुरत होती है वहा ज्यादातर लोग चूहे की तरह बिल में घुस जाते है।

जैसे की एक टीवी चैनल ने थोड़े दिनों पहले एक प्रयोग किया था। एक कार में चीखती हुई लड़की की ऑडियोनो टेप चला के रखी थी। पास से गुजर ने वाले लोको का रिएक्शन कैमरे में कैद किया गया। दस में से एक के अनुपात में ही लॉग बचाने के लिए आगे आए। कुछ लोग हँसते हुए निकल गए और कुछ इसलिए भाग गए की किसी बवाल में नहीं पड़ना चाहते थे। पता नहीं कहा चली जाती है ऐसे वक्त में ऐसी बहादुरी? कहा चला जाता है वो जानवरो का झुण्ड? जो किसी की जान लेने से भी खचकाते नहीं, यह जाने बिना की उसने गुनाह किया है या भी नहीं? किया है तो क्या इतना बड़ा गुना है जो उसे मार दिया जाये? या फिर ये सब कौन होते है इंसाफ करने वाले?

कई सारे सवाल मन में उठते है जब ऐसी घटनाए घटती है।

हम सब को एक चीज का तो अनुभव होगा ही। जब कभी हम बाइक या कार लेके जा रहे हो और अचानक से कोइ लड़की या महिला आपसे आके टकरा जाए तो यकीन मानिये आपकी तो सामत आ जायेगी। चाहे आप की गलती न भी हो। क्योंकि भीड़ को लगता है गलती आपकी ही होगी। भीड़ पूर्वग्रह से पीड़ित होती है। इस लिए वो सही गलत का फैसला नहीं कर पाती।

ये भीड़ का अँधा कानून है जो गूंगा, बहरा, बेदर्द और अँधा होता है। हम ऐसे किसी भीड़ का हिस्सा न बन जाये यह बस खयाल रखे।

आप किसी भी सभ्य समाज वाले देश को देखले। जब भी किसी नागरिक को कोइ घटना गैर क़ानूनी लगती है तो वो तुरंत पुलिस का संपर्क करते है। अपनी जवाबदेही बखूबी अदा करते है वह लोग। हम भी अपनी जवाबदेही समजे। कभी भी कुछ गलत होता हुआ देखे या फिर कोइ भीड़ को अत्याचार करते हुए देखे तो तुरंत पुलिस को खबर करे। हो सकता है आप भी कभी किसी भीड़ के अंधे कानून का शिकार बन जाये! इस लिए सतर्क रहे और दुसरो की मदद करे।

आपके विचार जरूर बताए। धन्यवाद।

Saturday, June 27, 2015

प्यार और हमारा समाज (Honour Killing)

वीर और सीमा एक दूसरे को बहोत प्यार करते थे। यु कहे की एक दूसरे के लिए जीने मरने की कसमे खा चुके थे। प्यार होता ही ऐसा है की लोग अपनी जान तक की परवा नहीं करते, बशर्ते प्यार सच्चा हो।
पता था दोनों को अपने प्यार का अंजाम! पर वह उमीद ही थी जो दोनों के आने वाले कल को लिखने वाली थी।
अलग अलग जाती के थे दोनों। प्यार करते वक्त ये सब कौन सोचता है भला! अरे!भाई प्यार करता कौन है? वो तो बस हो जाता है। इन दोनों को भी हो गया था।
दोनों ने अपने अपने घरवालो को बताया। मानो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। सीमा को तो ऐसे पिटा गया जैसे वह बेटी न होकर कोई भयावह गुनेगार हो। अचानक से जैसे दोनों के लिए अपने ही पराये हो गए। और सीमा के लिए तो मानो कालापानी की सजा ही मिल गई। अरे भाई लड़की थी न वो! और हमारे हिंदुस्तान में लड़की का प्यार करना यानि सबसे कलंकित गुनाह! कितनी घटिया सोच है ना?

दोनों ने भाग के कोर्ट में शादी कर ली। पर दोनों उस बात से अंजान थे की आगे उनकी जिंदगी में क्या तूफान आने वाला है।
सीमा के चाचा का फोन आता है। मिलाना था उसे, धूम धाम से शादी करानी थी दोनों की।

जिस जगह बुलाया था वहा पहोंच गए दोनों, अपने सूनहरे भविष्य की आस आँखों में संजोए हुए। पर ये क्या! सीमा का चचेरा भाई रोहित भाड़े के गुंडों के साथ खड़ा था वहाँ। दोनों को यह बात समजते देर नहीं लगी की उनके साथ छल हुआ है। पर अब भागना नहीं चाहते थे दोनों। कहा जाते भागके? जब अपने ही जान के प्यासे बन बेठे हो।

दोनों ने एकदूसरे के सामने देखा और मन ही मन मानो वह एक दूसरे को कह रहे हो की अब वो कसम पूरी करने का वक्त आ गया है जिसमे हम साथ में जी न सके पर मौत ही सही। कम से कम हमको हमारी मौत से तो जुदा नही कर पाएंगे न यह लोग।

रोहित सीमा को ये कह के जहर की बोतल थमाता है की अगर वीर से सच्चा प्यार है तो पिलो ये ज़हर। कुछ ही देर में वो जहर सीमा के शरीर में था और सीमा ज़मीन पे। अब बारी वीर की थी। पर उसे इतनी आसान मौत कहा नसीब थी भला। वीर को गाड़ी के पीछे बांध के तब तक घसीटा जाता है जब तक वो अपनी सीमा के पास नहीं पहोच गया। यह कहानी सच्ची घटना पे आधारित है।

गुस्सा आता होगा ना रोहित और उनके गुंडों पर? पर रुकिए जरा, क्या सिर्फ वहीँ लोग गुनहगार है क्या? हमारी घटिया सोच भी जिमेदार नहीं है क्या? जो प्यार को पवित्र मानने की जगह सिर्फ संकुचित नजर से ही देखा जाता है।

हम वही लोग है जो किशन कनैया की उन बातो का पाठ करते है जिसमे राधाजी है, रुक्मणीजी का हरण है, गोपिया है। और मानते है इन सब चीजो का पाठ करने से हमारे सारे पाप वैसे धूल जायेंगे, जैसे सर्फ एक्सेल से हमारे गंदे कपडे!

हम उन सब शक्तिपीठ का पूजन करते है, जहा जहा माँ गौरी के टुकड़े उस वक्त गिरे थे जब प्रभु शिव शंकर माँ गौरी के मृत्यु के गम मे उसे उठा क़र हिमालय ले जा रहे थे।
हमारा गुजरा हुआ कल तो काफी भव्य था प्यार करने वालो के लिए। पता नहीं ये गंदकी वर्त्तमान में कहा से आ गई।
कमी हमारी सौच में है। हम बस दिखावा करना जानते है। दरअसल हमारा समाज दंभी है। जी हा बिलकुल सही बोला है मैने। हम बस दुसरो को दिखाना चाहते है की हम कितने पाक साफ है। पर मन में तो कुछ और ही होता है।

इन प्यार के ज्यादातर मामलो में लड़के या लड़की के माता पिता को ज्यादा आपत्ति नही होती है। पर समाज क्या कहेगा या हमारे रिश्तेदारो को क्या मुह दिखाएंगे ये सोच कर ही मामला बिगड़ जाता है। अरे भाई ये समाज है क्या चीज? दिनेश, रमेश, सुरेश या इन जैसे लोगों का वो समुह जिस का काम सिर्फ गपे लड़ना हो। और हम उनसे डरते है।

और हैरानी की बात तो यह है की यही समाज, पता नहीं उस वक्त कहा चला जाता है? जबी honour killing की घटनाए सामने आती है।

हम पश्चिमी संस्कृति को काफी कोसते रहते है। पर एक बात है, वह लोग जैसे है वैसे ही दिखाई देते है। उसकी कई बाते हमें काफी बोल्ड लगती है पर  अच्छा है दम्भ नहीं है।

सोच ही है जो हमारे उनके बिच का फर्क है। वरना कभी हम भी सोने की चिड़िया हुआ करते थे। सोच बदलो देश बदलो।

धन्यवाद। जय हिन्द।

आतंकवाद से लड़े कैसे?

थोड़े दिन पहले भारतीय सेना ने नक्सलवादियो को म्यांमार की सिमा में अंदर घुस के मारा।
ये समाचार थोड़े ही घंटो में पुरे देश में पहोच गए। पूरा देश मानो ख़ुशी से झूम उठा। सेना के
जवानो के सर गर्व से ऊचे हो होंगे।
पहेली बार देश ने सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में जाना। पहेली बार दुश्मनो को चूहे की तरह मरते हुए
देखा,  वरना अब तक तो सिर्फ जवानो के शहीद होने की खबरे ही आती थी।
चीन को समज में आ गया होगा की अब ये पहले वाला भारत नहीं रहा। यहाँ ईट जवाब बन्दुक से मिलेगा। जो नकस्ली मारे गए है उन को ट्रेनिंग और हथियार चीन ही देता था।

आज भी भारत के लोगो को वो दिन अच्छी तरह याद है जब कसाब और उनके साथी हमारे नागरिको को बेरहमी से सरेआम मार रहा था। हमारे ही घर में आकर हमारे ही नागरिको को मारने की जुर्रत की थी उन लोगो ने। पर हमारे नेता ऐसे बयान दे रहे थे जेसे सारे आतंकी उनके बयान से ही मर जाने वाले हो। पुरे विश्व् में शांति का ठेका मानो हमने ही ले रखा था।

अभी तो ये सिर्फ सुरुआत है। हमें तब तक शांति से नहीं बेठना चाहिए जब तक हिंदुस्तान के दुश्मनो के दिल में हमारा ख़ौफ़ न हो। चाहे पाकिस्तान में हो या अरब देश में उनको मोत सर पे मंडराती दिखनी चाहिए। ये सब कैसे होगा? हमें इसारयल से सीखना होगा।

एक आतंकी इसरायल के दुश्मन देश में जाके छुप के बेठा था। मोसाद जोकि इसरायल की जासूसी संस्था है उसे पता चला। तुरंत एक प्लान बनाके जासूस को रवाना किया। दुश्मन को दुश्मन के देश में जाके मारना था। ये कोई आसान बात नहीं थी। पर उसका पाला भी मोसाद से पड़ा था लिहाजा उस आतंकी की मोत तो निश्चित ही थी।

सुबह का समय होगा शायद। आतंकी के घर का पता लगाने के बात उनके टेलेफोन की वायर काट दी। बाद में टेलीफोन रिपेर कहाने के बहाने वो जासूस घर में घुसा। थोड़ी देर बाद टेलीफोन रिपेर करके वो चला गया। कुछ मिनिट का समय बिता होगा। टेलेफोन की घंटी बजती है। आतंकी जेसे ही फोन उठता है, धड़ाम की आवाज से पूरा इलाका गूंज उठता है और वो आतंकी वही ढेर हो जाता है।

उस टेलेफोन के साथ उस जासूस ने बम लगा के रखा था। ऐसे ही एक एक करके इसरायल अपने दुश्मनो को साफ करता है और उनके दिलो में ख़ौफ़ बिठा देता है। ताकि इसरायल से पंगा लेने से पहले कोई भी आतंकी हजार बार सोचे।

हमारे यहाँ क्या ऐसा करना संभव है? इसका जवाब आपको देना होगा क्योकि हमारे यहाँ आतंकी जैसे शेतानो को भी इंसान मानाने वालो की एक पूरी जमात है। जो उन पुलिस वालो के बारे में भी नहीं सोचते जो जवान एनकाउंटर में शहीद होते है। उसका सही उदाहरण बाटला हाउस एनकाउंटर है।

पर शायद अब हवा ने रुख बदला है। देखते है आगे क्या होता है।

जय हिन्द। वंदे मातरम्।