Saturday, November 21, 2015

Yes India is intolerance!



इससे पहेले की आप हेडिंग पढ़के कुछ राय बना ले,और सोचे की में भी अवोर्ड वापस करने वाला कोइ लेखक हु तो पहले मेरा पूरा लेख जरुर पढ़ ले। ना ही मेरे पास कोई अवोर्ड है और ना ही में उतना महान लेखक या कलाकार हु।

तो में ये बताऊ की क्यों और किस लिए हमारा देश असहिष्णु है इस से पहले आपको एक घटना बताना चाहूँगा।

बस कुछ दिनों पहेले की ही बात है। में अपने मामा के घर गया था। थोड़ी देर बाद मुझे किसी ने बोला की तेरे गाव की एक लड़की यहाँ ससुराल में है और तुजे चाय पीने के लिए उसने बुलाया है। मेने पता किया तो मालूम पड़ा की वो मेरे गाव की मुस्लिम लड़की है जिसे में ठीक से जानता भी नहीं। पर वो मुझे थोडा बहोत पहचानती थी और क्योंकी हम एक गाव से थे तो स्वाभाविक था उसने अपना भाई समज  के बुलाया होगा।

अब मेरी एक  उलजन थी। हमारे यहाँ गुजरात में अगर कोई भी व्यक्ति कही भी महमान बनकार जाते है तो ‘जय श्री कृष्णा’ बोलते है। तो में वहा पर जा कर उनके ससुराल वालो के सामने में क्या बोलूँगा? ये मेरी उलजन थी, क्योंकी इससे पहेले में कभी महमान बनकर कभी किसी मुस्लिम परिवार के यहाँ नहीं गया था।

जब में वहा पंहुचा तो एक बड़ी उम्र के दादा वहा बिलकुल गुजराती कठियावाडी कपडे पहने बेठे हुए थे और माथे पे पघडी थी। मेने सोचा कोई पड़ोस वाले दादाजी होंगे सायद। उसने ‘जय श्री कृष्ण’ कह के  मेरा स्वागत किया। थोड़ी देर बाद बातचीत करने के बात पता चला की उस दादाजी का नाम हुसैनभाई है और वो हमारे गाव की लड़की के ससुरजी थे।

तो ये है मेरे देश की सहिष्णुता। यहाँ पर लोग काफी मिलजुलकर रह रहे है। पता नहीं किसको यहाँ लोगो के बिच असहिष्णुता दिखाइ पड़ती है?

आप सोचेंगे की अरे भाई! आपने ही लिखा है अपना हेडिंग! ठीक ही लिखा है। पर कैसे? चलो में समजाता हु।

जिन जिन लोगो ने अपने अवोर्ड वापिस लोटाए है उसने असहिष्णुता का आधार या यु कहे की पैमाना उत्तर प्रदेश में हुयी एक हत्या को माना है। वो हत्या तो काफी निंदनीय है। पर क्या ये सही है की उस हत्या को पैमाना बना कर भारत को असहिष्णु घोषित कर दिया जाए? बिलकुल नहीं।

भारत अगर सही मायने में असहिष्णु है तो वो प्यार करने वालो के प्रति है। अगर हत्या ही पैमाना है तो न जाने अब तक कितने मासूम प्यार करने वाले ओनर किलिंग की भेट चढ़ गए है। किसी लेखक या कलाकार को ये असहिष्णुता क्यों नहीं दिखाई देती? क्यों की इसका कोइ राजनेतिक फायदा या लिंक नहीं है इस लिए? कितने जोड़े समाज या परिवार के डर से आत्महत्या कर लेते है। वो किसी को क्यों दिखाइ नहीं देता? जवाब बिलकुल आसान है। इस मुदे में न ही कोई राजनितिक रंग दे सकते है और ना ही मोदी को घेर सकते है।

कुछ दिन पहले एक न्यूज चेनल में अनुपम खेर का इंटरव्यू चल रहा था। वो इस लिए की उसने सहिष्णुता मार्च निकली थी और उस पर उसके विचार जानने थे।

एक पत्रकार ने उनसे पूछा, “आप कहते है की इन लोगो ने अवोर्ड पहले की घटनाओ पे क्यों नहीं लोताए। तो सवाल आपसे ये बनता है की जब अन्ना आन्दोलन चला तो आप भी उसमे साथ थे। तो आपने ये सवाल तब क्यों नहीं उठाया की भ्रस्टाचार के खिलाफ आन्दोलन उस वक्त ही क्यों किया? भ्रस्टाचार तो पहले भी था।”

 बड़ा अच्छा सवाल पूछा था उस पत्रकार मित्रने। पर उसका जवाब बिलकुल आसान है। उस वक्त आन्दोलन इस लिए करना पड़ा की भ्रस्टाचार ने पुराने सारे रिकोर्ड तोड़ दिए थे। हर रोज कोइ न कोई कौभांड अगले कौभांड की रेस में लगा हुआ था।

पर इस समय जो घटना घटी है वो निंदनीय तो है पर इतनी बड़ी तो कतई नहीं है के एक पुरे देश को असहिष्णु घोषित कर दिया जाए। 

विरोध करना ही है तो प्यार करने वालो के प्रति जो असहिष्णुता है उसका करो। आपको उसमे आंसू क्यों नहीं आते? कहा जाती है आपकी भावनाए उस वक्त जब आप ऑनर किलिंग की घटनाओ को सुनते है?

माफ़ करना आप सब महान लेखक या कलाकार है। जैसे ध्रुतररा्स्ट्र अँधा तो था ही पर पुत्र प्रेम ने उसे और अँधा कर दिया था। आप वैसे मत बनिए प्लीज़।  

Monday, July 27, 2015

Gurudaspur attack: as it happens

Punjab के Gurudaspur में Terrorist attack हुआ। पहले पुरी घटना का घटनाक्रम जान लीजिए।

5:10 AM आतंकी एक Maruti 200 पर हमला करते है और चालक को वही सड़क पर छोड़ कर कार लेकर निकल जाते है।

5:25 AM एक बस पर हमला करते हुए आगे निकल जाते है।

5:45 AM Gurudaspur के Dinanagar थाने में गोलिया चलाते हुए घुस जाते है। और वह मौजूद पुलिसकर्मी को अपना निशाना बनाते है और वहा मौजूद दो अपराधी को भी गोली मार देते है।

6:10 AM पुलिस Dinanagar थाने को घेर लेते है और जवाबी कारवाही करते है।

11:00 AM संसद की कार्यवाही आज भी बार बार स्थगित हो रही है। कोइ फर्क नहीं पड़ता विपक्ष को इस आतंकी हमले का। और बड़े दुर्भाग्य की बात ये है की विपक्ष चाहता है की कारवाही की पूरी रिपोर्टिंग संसद में हो। अरे भाई आप कुछ कर नहीं सकते तो कम से कम आतंकियो की मदद हो जाये ऐसा तो कुछ मत करिए।

11:50 AM Lalu prasad yadav का बयान आता है की ये हमला मोदी सरकार पर हुआ है। गजब है ना!

1:00 PM Yakub Meman की सुनवाय सुप्रीम कोर्ट में कल तक के लिए ताल दी जाती है।

2:30 PM ज्यादातर न्यूज़ चेनल्स पे सास बहु की साजिस वाली कहानिया सुरु हो जाती है।

3:00 PM वो कांग्रेस जो अब तक कई सालो तक शासन में थी, हाथ में पुतला लिए दिल्ली में प्रदशन कर रही है।

और इन सब कवरेज के बिच में Arvind Kejriwal की वो 520 कारोड़ वाली आवाज गूंजती रहती है।

इन सब के बिच एक चीज हमें पॉजिटिव लगी की कोइ भी न्यूज़ चैनल्स ने इस घटना के लाइव विज़ुअल नहीं दिखाए, क्योकि वो एक बार यह गलती मुम्बई हमले के वक्त कर चुके थे।

ऊपर का पूरा घटनाक्रम बहोत कुछ कह जाता है।
जय हिन्द।

Sunday, July 19, 2015

Minaxi case in Delhi

Delhi में Minaxi नाम की लड़की को सरेआम, दिन के उजाले में दो भाई और उनकी माँ ने मिलकर मार डाला। हैरान और सोचने पर मजबूर करने वाली बात थी की Minaxi पर एक दो या पांच परब नहीं बल्कि 35 बार छुरी का वार किया था। लोग बस ऐसे देख रहे थे मानो उन्हें कुछ परवा ही न हो। शर्म आती है की वहा एक भी बचाने वाला नहीं मिला।

दर्द तो तब और भी बढ़ जाता है जब प्रदशन करने सेकड़ो लोग पहोंच जाते है। किसके खिलाफ प्रदशन कर रहे हो अरे बुजदिलो? शर्म आनी चाहिए ऐसे प्रदशन करते वक्त। अपने भीतर जाको जरा। भीड़ का हिसा बनाकर, पुलिस के पानी के प्रहार के सामने टिककर अपने आप को बहादुर समाज रहे है कुछ लोग। यही बहादुर पता नहीं किस बिल में छुप जाते है पता नहीं।

यही नहीं जब वो तीनो अपराधी Minaxi को मार रहे थे तब वो बचने के लिए एक घर में घुस गयी। उस घरवालो ने तो उसे लात मारकर निकाल दिया और मोत के मुख में धकेल दिया। मेरा तो मानना है की तीनो अपराधी के साथ साथ उन सभी को भी इस केस में अपराधी बनाना चाहिए।

माफ़ करना पर वो लोग जो अलग राजनीती की बात कर रहे थे आज वो ये कह कर दिल्ली पुलिस पर कब्जा चाहते है की हम दिल्ली पुलिस को सुधार देंगे। अरे भाई आप तो पॉलटिक्स में भी कुछ सुधर ने के लिए ही तो आए थे। अब आपके बयान भी शीला दीक्षित की तरह हो गए है। करना है तो एक काम करिए Arvindji अपने कार्यकर्ताओ को कहिए की ऐसे अपराध के समय उनका समाना करके दिखाए। बहोत देख लिए आपके धरने प्रदशन। और यही बात Congress और BJP भी समाज जाए तो अच्छा है।
मुझे लगता है इस देश में तब तक अपराध कम नहीं होंगे जब तक हमारी भीड़ वीर प्रजा बहादुर न बन जाए। आखिर में एक छोटी सी कहानी जो बहोत कुछ कहती है।

Germany में जब Hitler का राज था तब एक यहूदी के गांव में रोज हिटलर के सैनिक जाते और कुछ लोगों को मार डालते। एक यहूदी ये सब रोज देखता था और ये सोचकर खुश होता था की वो और उनका परिवार बिलकुल सुरक्षित है। एक दिन Hitler के सैनिक आते है और इस महासय को मारने के लिए उठाते है। वो काफी चिलता है की कोइ उसकी मदद कर दे। पर अफसोस कोइ नहीं आता।

जय हिन्द।

Sunday, July 12, 2015

Mission of Mosad

बस कुछ दिनों पहले की ही बात है। Pakistan के रक्षा मंत्री खवाजा आसिफ का बयान आया की वो nuclear weapons का कभी भी इस्तेमाल कर सकते है। 'मरता क्या नहीं करता?' इस उक्ति को वो यथार्थ ठहरा रहे है। हमें सचेत रहने की जरुरत है, क्यों की उनका निशाना हिंदुस्तान की तरफ ही था।
यु तो हमें काफी पहले ही Pakistan के nuclear program पे लगाम लगाने की जरुरत थी। तो फिर हमें ऐसे बयान सुनने की नोबत नहीं आती। पर क्या ये संभव है? हा, बिलकुल संभव है। दुश्मन को जन्म से पहेले ही दफना देना कोई Israel से सीखे! चलो पुरे सिलसिलेवार तरीके से जानते है पूरी कहानी।
ये पूरी कहानी Israel के उन पराक्रमो की है, जिसकी वजह से Iran अभी तक nuclear weapons नहीं बना पाया। साल 1988 से सुरु हुआ उसका सपना आज 2015 में भी बस एक ख्वाब ही है।
Iran को nuclear weapons बनाने की जरुरत क्यों पड़ी? उसका जवाब है साल 1980 में सुरु हुआ Iran-Iraq war। जो करीब 8 साल तक चला। लाखो लोग और सिपाही दोनों ओर से मारे गए। पर Iran को नुकसान ज्यादा हुआ था, क्योकि सदाम हुसेन की सेना ने रासायनिक हथियारों का इस्तमाल किया था।
उस समय तक nuclear weapons को इस्लाम विरोधी मानने वाले और परोक्ष तरीके से Iran में शासन चलाने वाले Ayatollah khomeini को लगा की दुश्मन को डराने के लिए nuclear weapons आवश्यक है। ये साल था 1988। उसी साल आयातोल्लाह ने फतवा जारी करके कहा की nuclear weapons को इस्लाम विरोधी नहीं माना जायेगा।
उसके ठीक एक साल बाद Ayatollah की सन् 1989 में मोत हो गई। और यही वो साल था जब साम्यवाद के अतिरेक के चलते रशिया टूट गया। इसी समय इसारयल की जासूसी संस्था Mossad को खबर मिली की रशिया के बेकार हुए साइंटिस्ट और nuclear weapons पे Iran की नजर है। इसी लिए Israel सचेत हो गया, क्योकि उसे Iran की तरफ से कई बार धमकिया मिल चुकी थी। Iran के लिए अमेरिका और Israel दुश्मनो की सूचि में सबसे ऊपर थे। जाहिर है अगर Iran nuclear weapons बना ले या तो किसी भी तरह से हासिल कर ले तो फिर उसका निशाना इसारयल ही होगा।
उसी कालखंड में दुबई में एक मीटिंग होती है। जिसमे तीन ईरानी और तीन यूरोपीय परमाणु विज्ञानी के आलावा दो पाकिस्तानी भी शामिल थे। यह मीटिंग Iran के nuclear weapons के सपने को एक कदम आगे ले गयी।
उन दो पाकिस्तानी में से एक का नाम था डॉ. अब्दुल कादिर खान। Pakistan के nuclear weapons के पितामह! सौदा यह तय हुआ था की Iran को रुपए के बदले में nuclear weapons की ब्लूप्रिंट दी जाए।
nuclear weapons में इस्तमाल के लिए Uranium-235 की जरुरत होती है। Uranium-235 दुर्लभ है और इसे Uranium-238 में से बनाया जा सकता है। कुदरत से मिलने वाला Uranium-238 का Uranium-235 में रूपांतर करने के लिए जो चीज इस्तमाल होती है उसे centrifuge कहते है। centrifuge नलाकार आकार में होता है। जिसकी भीतर की धरी प्रति मिनिट लगभग 100000 चक्कर लगा के केंद्रत्यागी बल पैदा करते है। जिससे वजन में भारी Uranium-238 और Uranium-235 अलग हो जाते है।
ये centrifuge की ब्लूप्रिंट डॉ. खान ने उस वक्त चुराई थी, जब वो यूरोपियन कंपनी यूरेको में 70 के दसक में काम करते थे। इसी के बल पर डॉ. खान ने Pakistan को परमाणु ताकत वाला देश बनाया था।
Iran nuclear weapons बनाने की कोशिश में लगा हुआ था और Israel अपने देश के दुश्मन की इस मुराद को पूरी होने देना नहीं चाहता था। इसी लिए उसने पहला काम उन लोगो को काम तमाम करने का किया जो Iran के nuclear program से जुड़े हुए थे।
तारीख थी 23 नवम्बर, 2010 और सुबह का समय था। Iran की राजधानी Tehran में डॉ. मजीद शहरयारी अपनी कार में जा रहे थे। साथ में उनकी पत्नी भी बेठी थी। उसी वक्त पीछे से मोटरबाइक पे हेल्मेट पहने एक सवार कार के पास पहोंच कर, कार की विंडसिल्ड में कुछ लगा देता है। बस थोड़ी देर बाद एक बहोत बड़ा धमाका होता है और डॉ. मजीद की मौके पे ही मोत हो जाती है। उनकी पत्नी बुरी तरह से घायल हो जाती है। डॉ. मजीद Iran के सूचित nuclear weapons के गुप्त कार्यक्रम से जुड़े हुए थे।
बिलकुल इसी तरीके से एक और विज्ञानी डॉ. फेरेदुन अब्बासी को भी कार में बम लगा के मार ने की कोशिश की, लेकिन हो घायल होने के बावजूद बच गए। बाद में उसे Iran का उपप्रमुख भी बनाया गया।
साल 2006, जनवरी में एक पैसेंजर जेट विमान टूट कर गिर गया। उसमे बेठे सारे लोगो की मौत हो गयी। मरने वालो में रिवोल्युसनरि गार्ड के नाम से जाने जनि वाली टुकड़ी के कई सदस्य भी शामिल थे। ये टुकड़ी Iran के nuclear program का कामकाज देखती थी।
इसी साल और दूसरा एक मिलिटरी विमान टूट के गिर गया। उसे आसमान में चढ़े अभी बस कुछ ही मिनिट्स हुयी होगी। उसमे रिवोल्युसनरि गार्ड के 36 जवान मारे गए।
ये सारे पराक्रम Israel की जासूसी एजंसी Mossad के Secret agents के थे। जो कभी पकड़े नहीं गए।
दूसरी और Mossad ने उन देशो में अपनी फर्जी कंपनिया कड़ी कर दी जहा से Iran ब्लैक में nuclear weapons के लिए पुर्जे खरीद रहे थे। और बाद में ऐसे माल की सप्लाई करते की कभी Iran का प्लांट चल ही न पाए।
अप्रैल 2006 के साल में Iran के नातन्झ की घटना है। एक भूगर्भ संकुल में परमाणु विज्ञानी, रिवोल्युसनरि गार्ड के अफसर और कुछ टेक्नीशियन इकठा हुए थे। सब लोग खुश थे क्यों की हजारो की संख्या में रखा हुआ centrifuge का नेटवर्क आज कार्यान्वित होने वाला था। और इस से nuclear weapons के लिए आवश्यक Uranium-235 मिलने वाला था।
जब वहां के चीफ इंजीनियर ने बटन दबाया तो दूसरे ही पल वहा जोर से धमाका हुआ और पुरे centrifuge के प्रोजेक्ट को कबाड़ बना कर रख दिया। इसके चलते अब Iran को Uranium-235 के लिए सरू से सरुआत करने की नोबत आई। इस घटना से पता चलता है की Mossad के जासूस कहा कहा पहोंच सकते है।
Mossad का अगला मिशन तो और भी सनसनीखेज़ था। नातान्झ में हजारो centrifuge का अंडरग्राउंड एकम था जो की साल 2006 में धमाके में तबाह हो चूका था। उस यूनिट को फिर से हजारो centrifuge से बनाया गया था। यहाँ के हजारो centrifuge अपना काम दिन रात कर रहे थे। इन सब centrifuge का नियमन सीमेन्स कंपनी द्वारा बनाया गया कंट्रोल यूनिट कर रहा था। इस कंट्रोल यूनिट का काम centrifuge की गति और उसको मिल रहे पवार सप्लाय का नियमन और नियंत्रण करना था।
इसी कंट्रोल यूनिट को अपना निशाना बनाने के लिए Israel ने एक कम्प्यूटर वायरस बनाया और नाम दिया Stuxnet. ये वायरस इस तरह से बनाया गया था की ये सिर्फ centrifuge के कंट्रोल यूनिट को ही टारगेट करे, ताकि ये बिच में आने वाले कंप्यूटर के एंटीवायरस की नजरो में न आ सके।
कंट्रोल यूनिट का काम हर एक मिली सेकंड का हिसाब रखना था। जेसे ही Stuxnet ने अपना काम सुरु किया तो सबसे पहले उसने centrifuge की गति बढ़ा दी ताकि उसके पुरजे बर्बाद हो जाये और पता भी न चले। थोड़ी देर ये काम करने के बाद अचानक से ये वायरस सुषुप्त हो गया। ठीक 27 दिन बाद ये वायरस फिर से जागा और centrifuge की गति इस बार कम कर दी।
Stuxnet ने ऐसा कई बार किया। जिसका परिणाम ये आया की उस यूनिट के लगभग एक हजार centrifuge बिलकुल बेकार हो गए।
इसारयल के लिए ये सब करना जरुरी है क्यों की उसके अस्तित्व का सवाल है। उत्तर से पश्चिम के हिसाब से 420 किलोमीटर और पश्चिम से पूर्व के हिसाब से 110 किलोमीटर का विस्तार ही Israel के पास है। जाहिर है सिर्फ एक nuclear weapons ही काफी है पुरे देश को तबाह करने के लिए। इसी लीए पुरे जी जान से Mossad जुट हुआ है Iran को परमाणु शक्ति बनने से रोकने के लिए। इसी लिए आज की तारीख तक Iran nuclear weapons नहीं बना पाया, जिसका सपना Iran ने साल 1988 में देखा था।

Wednesday, July 1, 2015

मानव तस्करी (Human trafficking)और हम

Human trafficking ऐसी चीज है जिस के बारे में ज्यादातर लोग थोडा बहुत ही जानते है। ये सारा खेल पर्दे के पीछे का है। इस में अलग अलग कई टीम काम करती है जो एक दूसरे के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं रखते। इस की मुख़्य वजह ये है की अगर कभी कोइ पकड़ा भी जाए तो पुरे गैंग का पर्दाफाश न हो सके। पर ये सब होता कैसे है? आईये में आपको एक सच्ची घटना बताता हु।
आसाम के एक छोटे से शहर में एक औरत अपनी छोटी सी बच्ची के साथ रहती थी, नाम था दिव्या। दिव्या के पति की 2 साल पहले की एक रोड अकस्मात में मृत्यु हो गयी थी। वो अपना गुजरान दुसरो के घरकाम करके कर रही थी।
एक दिन अचानक से दिव्या को दिल्ली से एक कॉल आता है। सामने वाली औरत अपना परिचय शिखा के नाम से देती है और दिव्या को एक जॉब ऑफर करती है। दिव्या ये ऑफर सुन के काफी खुश हो जाती है और जॉब के लिए हा बोल देती है। ऑफर ही कुछ ऐसी थी! दिल्ली के एक बड़े मोल में काम करना था और पगार था 25000 रुपए। वो तो बस अपने और अपनी बेटी के सुनहरे भविष्य के बारे में सोच कर ही खुश हो गयी। मानो बस अब दुःख के दिन चले गए।
दिव्या के पड़ोस में अंकिता नाम की एक छोटी लड़की रहती थी। अभी 9वीं कक्षा में पढती थी, पर यकीन मानिए काफी होशियार थी अंकिता। तभी तो उसने जब सुना की दिव्या आंटी को इस तरह का जॉब ऑफर किया है तो उसे थोडा अजीब लगा। वो तो सीधे पहोंच गयी दिव्या के पास।
'आंटी सायद आपसे कोइ मजाक कर रहा है या फिर आपको फसा रहा है' अंकिता ने दिव्या को अपनी चिंता जताते हुए कहा। दिव्या को लगा सायद ये सब लोग से देखा नहीं जाता। और दिव्या ने अंकिता की बातो पे गौर नहीं किया।
पर अंकिता कहा हार मानाने वाली थी। वो तो पहोंच गयी सीधे पुलिस स्टेशन। वहा की महिला अधिकारी को अंकिता ने पूरा मामला समजाया और पूरी बात बताई। पुलिस को पूरी बात समजते ज्यादा देर नहीं लगी। मामले की गंभीरता को देखते हुए, उस पुलिस अधिकारी ने तुरंत दिव्या से घर जाकर बात की। अब दिव्या को मामले की गंभीरता समज में आई।
आगे जाकर पुलिस पूरा प्लान बनाती है इस गिरोह को पकड़ने का। लेकिन हाथ में सिर्फ कुछ लोकल सप्लायर ही आते है जो इस तरह की लड़कियो को दिल्ली पहुचाने का काम करते है। और वहा से उसे बेच दिया जाता है।
ये लोग काफी शातिर होते है। दिल्ली वाले मुख्य आरोपी पुलिस के हाथ नहीं लगते। जब पुलिस लोकेशन ट्रेस करके रेड करती है तब वहा उसे कुछ नहीं मिलता। वो लोग पहले ही वो जगह छोड़कर जा चुके होते है।
इस पुरे मामले में एक छोटी सी बच्ची अंकिता की जागरूकता काम आई। वरना जरा सोचिए, दिव्या को न जाने कैसी परिस्थिति से गुजरना पड़ता।
इस तरह के ज्यादातर मामलो में ये गिरोह का शिकारहै, गरीब राज्यो की वो लडकिया होती है जो नोकरी की तलाश में होती है। और सैलरी भी इतनी बड़ी ऑफर करते है की सामने वाले की सोचने की समज ही काम न करे।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग भारत की ऐसी समस्या है जिस पर अभी तक लोग इतना गंभीर नहीं है जितना होना चाहिए। क्या है न हमारी सोच ही कुछ ऐसी हो गई है। जबतक कोई समस्या हमसे नहीं टकराती, हमारे पेट का पानी भी नहीं हिलता। सोचिये अग़र वो बच्ची हिम्मत करके पुलिस स्टेशन नहीं गयी होती तो दिव्या की जिंदगी कैसे तबाह हो जाती।
रोज हजारो बच्चों का अपहरण होता है। जिसे या तो बेच दिया जाता या फिर भिक्षावृति में लगा दिया जाता है। एक पूरा रेकेट भिक्षावृति के धंधे में लगा हुआ है।
जरुरत है थोड़ी सतर्कता की। हमारे आसपास थोडा देखने की। काफी कुछ बदला जा सकता है। चलो शरुआत अपने पास कोई बच्चा भीख मांगने आता है तो उससे करे। बस थोड़ी सी पुछपरछ, और कुछ भी गलत लगे तो पुलिस को बताए। काफी कुछ जाने हम बचा सकते है।
जय हिन्द।

Tuesday, June 30, 2015

भीड़ और उसका अँधा कानून

कहते है भीड़ का दिमाग नहीं होता, पर पिछले कुछ दिनों में जो घटनाए सामने आई है, उससे तो यही लगता है की भीड़ का दिल भी नहीं होता। पता नहीं इतने बेदर्द कैसे हो जाते है ये लोग, की हम फर्क भी न कर पाये के यह इंसानो का झुण्ड है या फिर जानवरो का!

अभी जो एक घटना सामने आई है वो बिहार के नालंदा की है। यहाँ एक स्कुल में दो बच्चों की मोत हो गयी। जैसे ही लोगों को पता चला पहोच गए स्कूल पे। आचार्य से कुछ कहा सुनी होने के बाद भीड़ ने आचार्य को खूब पीटा। डंडे, घुसे, पैर जिसे जो मन में आया हाथ साफ कर लिया। और थोड़ी देर बाद उस आचार्य की मोत हो गयी।

असली कहानी बाद में सुरु होती है। जब दोनों बच्चों का पोस्टमॉर्टम हुआ, तो पता चला की उन दोनो बच्चों की मोत पानी में डुबने से हुयी थी।

ऐसी घटनाए पुरे देश में रोज बरोज घटती होगी पर कुछ ही सामने आती है। पता नहीं हमारे देश के लोगो को क्या हो गया है। जहा बहादुरी दिखाने की जरुरत होती है वहा ज्यादातर लोग चूहे की तरह बिल में घुस जाते है।

जैसे की एक टीवी चैनल ने थोड़े दिनों पहले एक प्रयोग किया था। एक कार में चीखती हुई लड़की की ऑडियोनो टेप चला के रखी थी। पास से गुजर ने वाले लोको का रिएक्शन कैमरे में कैद किया गया। दस में से एक के अनुपात में ही लॉग बचाने के लिए आगे आए। कुछ लोग हँसते हुए निकल गए और कुछ इसलिए भाग गए की किसी बवाल में नहीं पड़ना चाहते थे। पता नहीं कहा चली जाती है ऐसे वक्त में ऐसी बहादुरी? कहा चला जाता है वो जानवरो का झुण्ड? जो किसी की जान लेने से भी खचकाते नहीं, यह जाने बिना की उसने गुनाह किया है या भी नहीं? किया है तो क्या इतना बड़ा गुना है जो उसे मार दिया जाये? या फिर ये सब कौन होते है इंसाफ करने वाले?

कई सारे सवाल मन में उठते है जब ऐसी घटनाए घटती है।

हम सब को एक चीज का तो अनुभव होगा ही। जब कभी हम बाइक या कार लेके जा रहे हो और अचानक से कोइ लड़की या महिला आपसे आके टकरा जाए तो यकीन मानिये आपकी तो सामत आ जायेगी। चाहे आप की गलती न भी हो। क्योंकि भीड़ को लगता है गलती आपकी ही होगी। भीड़ पूर्वग्रह से पीड़ित होती है। इस लिए वो सही गलत का फैसला नहीं कर पाती।

ये भीड़ का अँधा कानून है जो गूंगा, बहरा, बेदर्द और अँधा होता है। हम ऐसे किसी भीड़ का हिस्सा न बन जाये यह बस खयाल रखे।

आप किसी भी सभ्य समाज वाले देश को देखले। जब भी किसी नागरिक को कोइ घटना गैर क़ानूनी लगती है तो वो तुरंत पुलिस का संपर्क करते है। अपनी जवाबदेही बखूबी अदा करते है वह लोग। हम भी अपनी जवाबदेही समजे। कभी भी कुछ गलत होता हुआ देखे या फिर कोइ भीड़ को अत्याचार करते हुए देखे तो तुरंत पुलिस को खबर करे। हो सकता है आप भी कभी किसी भीड़ के अंधे कानून का शिकार बन जाये! इस लिए सतर्क रहे और दुसरो की मदद करे।

आपके विचार जरूर बताए। धन्यवाद।

Saturday, June 27, 2015

प्यार और हमारा समाज (Honour Killing)

वीर और सीमा एक दूसरे को बहोत प्यार करते थे। यु कहे की एक दूसरे के लिए जीने मरने की कसमे खा चुके थे। प्यार होता ही ऐसा है की लोग अपनी जान तक की परवा नहीं करते, बशर्ते प्यार सच्चा हो।
पता था दोनों को अपने प्यार का अंजाम! पर वह उमीद ही थी जो दोनों के आने वाले कल को लिखने वाली थी।
अलग अलग जाती के थे दोनों। प्यार करते वक्त ये सब कौन सोचता है भला! अरे!भाई प्यार करता कौन है? वो तो बस हो जाता है। इन दोनों को भी हो गया था।
दोनों ने अपने अपने घरवालो को बताया। मानो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। सीमा को तो ऐसे पिटा गया जैसे वह बेटी न होकर कोई भयावह गुनेगार हो। अचानक से जैसे दोनों के लिए अपने ही पराये हो गए। और सीमा के लिए तो मानो कालापानी की सजा ही मिल गई। अरे भाई लड़की थी न वो! और हमारे हिंदुस्तान में लड़की का प्यार करना यानि सबसे कलंकित गुनाह! कितनी घटिया सोच है ना?

दोनों ने भाग के कोर्ट में शादी कर ली। पर दोनों उस बात से अंजान थे की आगे उनकी जिंदगी में क्या तूफान आने वाला है।
सीमा के चाचा का फोन आता है। मिलाना था उसे, धूम धाम से शादी करानी थी दोनों की।

जिस जगह बुलाया था वहा पहोंच गए दोनों, अपने सूनहरे भविष्य की आस आँखों में संजोए हुए। पर ये क्या! सीमा का चचेरा भाई रोहित भाड़े के गुंडों के साथ खड़ा था वहाँ। दोनों को यह बात समजते देर नहीं लगी की उनके साथ छल हुआ है। पर अब भागना नहीं चाहते थे दोनों। कहा जाते भागके? जब अपने ही जान के प्यासे बन बेठे हो।

दोनों ने एकदूसरे के सामने देखा और मन ही मन मानो वह एक दूसरे को कह रहे हो की अब वो कसम पूरी करने का वक्त आ गया है जिसमे हम साथ में जी न सके पर मौत ही सही। कम से कम हमको हमारी मौत से तो जुदा नही कर पाएंगे न यह लोग।

रोहित सीमा को ये कह के जहर की बोतल थमाता है की अगर वीर से सच्चा प्यार है तो पिलो ये ज़हर। कुछ ही देर में वो जहर सीमा के शरीर में था और सीमा ज़मीन पे। अब बारी वीर की थी। पर उसे इतनी आसान मौत कहा नसीब थी भला। वीर को गाड़ी के पीछे बांध के तब तक घसीटा जाता है जब तक वो अपनी सीमा के पास नहीं पहोच गया। यह कहानी सच्ची घटना पे आधारित है।

गुस्सा आता होगा ना रोहित और उनके गुंडों पर? पर रुकिए जरा, क्या सिर्फ वहीँ लोग गुनहगार है क्या? हमारी घटिया सोच भी जिमेदार नहीं है क्या? जो प्यार को पवित्र मानने की जगह सिर्फ संकुचित नजर से ही देखा जाता है।

हम वही लोग है जो किशन कनैया की उन बातो का पाठ करते है जिसमे राधाजी है, रुक्मणीजी का हरण है, गोपिया है। और मानते है इन सब चीजो का पाठ करने से हमारे सारे पाप वैसे धूल जायेंगे, जैसे सर्फ एक्सेल से हमारे गंदे कपडे!

हम उन सब शक्तिपीठ का पूजन करते है, जहा जहा माँ गौरी के टुकड़े उस वक्त गिरे थे जब प्रभु शिव शंकर माँ गौरी के मृत्यु के गम मे उसे उठा क़र हिमालय ले जा रहे थे।
हमारा गुजरा हुआ कल तो काफी भव्य था प्यार करने वालो के लिए। पता नहीं ये गंदकी वर्त्तमान में कहा से आ गई।
कमी हमारी सौच में है। हम बस दिखावा करना जानते है। दरअसल हमारा समाज दंभी है। जी हा बिलकुल सही बोला है मैने। हम बस दुसरो को दिखाना चाहते है की हम कितने पाक साफ है। पर मन में तो कुछ और ही होता है।

इन प्यार के ज्यादातर मामलो में लड़के या लड़की के माता पिता को ज्यादा आपत्ति नही होती है। पर समाज क्या कहेगा या हमारे रिश्तेदारो को क्या मुह दिखाएंगे ये सोच कर ही मामला बिगड़ जाता है। अरे भाई ये समाज है क्या चीज? दिनेश, रमेश, सुरेश या इन जैसे लोगों का वो समुह जिस का काम सिर्फ गपे लड़ना हो। और हम उनसे डरते है।

और हैरानी की बात तो यह है की यही समाज, पता नहीं उस वक्त कहा चला जाता है? जबी honour killing की घटनाए सामने आती है।

हम पश्चिमी संस्कृति को काफी कोसते रहते है। पर एक बात है, वह लोग जैसे है वैसे ही दिखाई देते है। उसकी कई बाते हमें काफी बोल्ड लगती है पर  अच्छा है दम्भ नहीं है।

सोच ही है जो हमारे उनके बिच का फर्क है। वरना कभी हम भी सोने की चिड़िया हुआ करते थे। सोच बदलो देश बदलो।

धन्यवाद। जय हिन्द।

आतंकवाद से लड़े कैसे?

थोड़े दिन पहले भारतीय सेना ने नक्सलवादियो को म्यांमार की सिमा में अंदर घुस के मारा।
ये समाचार थोड़े ही घंटो में पुरे देश में पहोच गए। पूरा देश मानो ख़ुशी से झूम उठा। सेना के
जवानो के सर गर्व से ऊचे हो होंगे।
पहेली बार देश ने सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में जाना। पहेली बार दुश्मनो को चूहे की तरह मरते हुए
देखा,  वरना अब तक तो सिर्फ जवानो के शहीद होने की खबरे ही आती थी।
चीन को समज में आ गया होगा की अब ये पहले वाला भारत नहीं रहा। यहाँ ईट जवाब बन्दुक से मिलेगा। जो नकस्ली मारे गए है उन को ट्रेनिंग और हथियार चीन ही देता था।

आज भी भारत के लोगो को वो दिन अच्छी तरह याद है जब कसाब और उनके साथी हमारे नागरिको को बेरहमी से सरेआम मार रहा था। हमारे ही घर में आकर हमारे ही नागरिको को मारने की जुर्रत की थी उन लोगो ने। पर हमारे नेता ऐसे बयान दे रहे थे जेसे सारे आतंकी उनके बयान से ही मर जाने वाले हो। पुरे विश्व् में शांति का ठेका मानो हमने ही ले रखा था।

अभी तो ये सिर्फ सुरुआत है। हमें तब तक शांति से नहीं बेठना चाहिए जब तक हिंदुस्तान के दुश्मनो के दिल में हमारा ख़ौफ़ न हो। चाहे पाकिस्तान में हो या अरब देश में उनको मोत सर पे मंडराती दिखनी चाहिए। ये सब कैसे होगा? हमें इसारयल से सीखना होगा।

एक आतंकी इसरायल के दुश्मन देश में जाके छुप के बेठा था। मोसाद जोकि इसरायल की जासूसी संस्था है उसे पता चला। तुरंत एक प्लान बनाके जासूस को रवाना किया। दुश्मन को दुश्मन के देश में जाके मारना था। ये कोई आसान बात नहीं थी। पर उसका पाला भी मोसाद से पड़ा था लिहाजा उस आतंकी की मोत तो निश्चित ही थी।

सुबह का समय होगा शायद। आतंकी के घर का पता लगाने के बात उनके टेलेफोन की वायर काट दी। बाद में टेलीफोन रिपेर कहाने के बहाने वो जासूस घर में घुसा। थोड़ी देर बाद टेलीफोन रिपेर करके वो चला गया। कुछ मिनिट का समय बिता होगा। टेलेफोन की घंटी बजती है। आतंकी जेसे ही फोन उठता है, धड़ाम की आवाज से पूरा इलाका गूंज उठता है और वो आतंकी वही ढेर हो जाता है।

उस टेलेफोन के साथ उस जासूस ने बम लगा के रखा था। ऐसे ही एक एक करके इसरायल अपने दुश्मनो को साफ करता है और उनके दिलो में ख़ौफ़ बिठा देता है। ताकि इसरायल से पंगा लेने से पहले कोई भी आतंकी हजार बार सोचे।

हमारे यहाँ क्या ऐसा करना संभव है? इसका जवाब आपको देना होगा क्योकि हमारे यहाँ आतंकी जैसे शेतानो को भी इंसान मानाने वालो की एक पूरी जमात है। जो उन पुलिस वालो के बारे में भी नहीं सोचते जो जवान एनकाउंटर में शहीद होते है। उसका सही उदाहरण बाटला हाउस एनकाउंटर है।

पर शायद अब हवा ने रुख बदला है। देखते है आगे क्या होता है।

जय हिन्द। वंदे मातरम्।