हिंदुस्तान विविधता से भरा हुआ देश है। हालांकि हमारी कई सारी खुबिया है, पर हमारी सोच और हमारा जीवन काफी कुछ बदलाव चाहता है। यहा में उन चीजो के बारे में बात करूँगा जिन चीजो का हमसे सीधा सम्बन्ध हो। कुछ बदलाव, कुछ हमारे दंभ, कुछ हमारी अच्छाईयां, और कुछ सच जो सायद हम भारतीय सुनना नहीं चाहेंगे।
Saturday, November 21, 2015
Yes India is intolerance!
Monday, July 27, 2015
Gurudaspur attack: as it happens
Punjab के Gurudaspur में Terrorist attack हुआ। पहले पुरी घटना का घटनाक्रम जान लीजिए।
5:10 AM आतंकी एक Maruti 200 पर हमला करते है और चालक को वही सड़क पर छोड़ कर कार लेकर निकल जाते है।
5:25 AM एक बस पर हमला करते हुए आगे निकल जाते है।
5:45 AM Gurudaspur के Dinanagar थाने में गोलिया चलाते हुए घुस जाते है। और वह मौजूद पुलिसकर्मी को अपना निशाना बनाते है और वहा मौजूद दो अपराधी को भी गोली मार देते है।
6:10 AM पुलिस Dinanagar थाने को घेर लेते है और जवाबी कारवाही करते है।
11:00 AM संसद की कार्यवाही आज भी बार बार स्थगित हो रही है। कोइ फर्क नहीं पड़ता विपक्ष को इस आतंकी हमले का। और बड़े दुर्भाग्य की बात ये है की विपक्ष चाहता है की कारवाही की पूरी रिपोर्टिंग संसद में हो। अरे भाई आप कुछ कर नहीं सकते तो कम से कम आतंकियो की मदद हो जाये ऐसा तो कुछ मत करिए।
11:50 AM Lalu prasad yadav का बयान आता है की ये हमला मोदी सरकार पर हुआ है। गजब है ना!
1:00 PM Yakub Meman की सुनवाय सुप्रीम कोर्ट में कल तक के लिए ताल दी जाती है।
2:30 PM ज्यादातर न्यूज़ चेनल्स पे सास बहु की साजिस वाली कहानिया सुरु हो जाती है।
3:00 PM वो कांग्रेस जो अब तक कई सालो तक शासन में थी, हाथ में पुतला लिए दिल्ली में प्रदशन कर रही है।
और इन सब कवरेज के बिच में Arvind Kejriwal की वो 520 कारोड़ वाली आवाज गूंजती रहती है।
इन सब के बिच एक चीज हमें पॉजिटिव लगी की कोइ भी न्यूज़ चैनल्स ने इस घटना के लाइव विज़ुअल नहीं दिखाए, क्योकि वो एक बार यह गलती मुम्बई हमले के वक्त कर चुके थे।
ऊपर का पूरा घटनाक्रम बहोत कुछ कह जाता है।
जय हिन्द।
Sunday, July 19, 2015
Minaxi case in Delhi
Delhi में Minaxi नाम की लड़की को सरेआम, दिन के उजाले में दो भाई और उनकी माँ ने मिलकर मार डाला। हैरान और सोचने पर मजबूर करने वाली बात थी की Minaxi पर एक दो या पांच परब नहीं बल्कि 35 बार छुरी का वार किया था। लोग बस ऐसे देख रहे थे मानो उन्हें कुछ परवा ही न हो। शर्म आती है की वहा एक भी बचाने वाला नहीं मिला।
दर्द तो तब और भी बढ़ जाता है जब प्रदशन करने सेकड़ो लोग पहोंच जाते है। किसके खिलाफ प्रदशन कर रहे हो अरे बुजदिलो? शर्म आनी चाहिए ऐसे प्रदशन करते वक्त। अपने भीतर जाको जरा। भीड़ का हिसा बनाकर, पुलिस के पानी के प्रहार के सामने टिककर अपने आप को बहादुर समाज रहे है कुछ लोग। यही बहादुर पता नहीं किस बिल में छुप जाते है पता नहीं।
यही नहीं जब वो तीनो अपराधी Minaxi को मार रहे थे तब वो बचने के लिए एक घर में घुस गयी। उस घरवालो ने तो उसे लात मारकर निकाल दिया और मोत के मुख में धकेल दिया। मेरा तो मानना है की तीनो अपराधी के साथ साथ उन सभी को भी इस केस में अपराधी बनाना चाहिए।
माफ़ करना पर वो लोग जो अलग राजनीती की बात कर रहे थे आज वो ये कह कर दिल्ली पुलिस पर कब्जा चाहते है की हम दिल्ली पुलिस को सुधार देंगे। अरे भाई आप तो पॉलटिक्स में भी कुछ सुधर ने के लिए ही तो आए थे। अब आपके बयान भी शीला दीक्षित की तरह हो गए है। करना है तो एक काम करिए Arvindji अपने कार्यकर्ताओ को कहिए की ऐसे अपराध के समय उनका समाना करके दिखाए। बहोत देख लिए आपके धरने प्रदशन। और यही बात Congress और BJP भी समाज जाए तो अच्छा है।
मुझे लगता है इस देश में तब तक अपराध कम नहीं होंगे जब तक हमारी भीड़ वीर प्रजा बहादुर न बन जाए। आखिर में एक छोटी सी कहानी जो बहोत कुछ कहती है।
Germany में जब Hitler का राज था तब एक यहूदी के गांव में रोज हिटलर के सैनिक जाते और कुछ लोगों को मार डालते। एक यहूदी ये सब रोज देखता था और ये सोचकर खुश होता था की वो और उनका परिवार बिलकुल सुरक्षित है। एक दिन Hitler के सैनिक आते है और इस महासय को मारने के लिए उठाते है। वो काफी चिलता है की कोइ उसकी मदद कर दे। पर अफसोस कोइ नहीं आता।
जय हिन्द।
Sunday, July 12, 2015
Mission of Mosad
Wednesday, July 1, 2015
मानव तस्करी (Human trafficking)और हम
इस पुरे मामले में एक छोटी सी बच्ची अंकिता की जागरूकता काम आई। वरना जरा सोचिए, दिव्या को न जाने कैसी परिस्थिति से गुजरना पड़ता।
इस तरह के ज्यादातर मामलो में ये गिरोह का शिकारहै, गरीब राज्यो की वो लडकिया होती है जो नोकरी की तलाश में होती है। और सैलरी भी इतनी बड़ी ऑफर करते है की सामने वाले की सोचने की समज ही काम न करे।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग भारत की ऐसी समस्या है जिस पर अभी तक लोग इतना गंभीर नहीं है जितना होना चाहिए। क्या है न हमारी सोच ही कुछ ऐसी हो गई है। जबतक कोई समस्या हमसे नहीं टकराती, हमारे पेट का पानी भी नहीं हिलता। सोचिये अग़र वो बच्ची हिम्मत करके पुलिस स्टेशन नहीं गयी होती तो दिव्या की जिंदगी कैसे तबाह हो जाती।
रोज हजारो बच्चों का अपहरण होता है। जिसे या तो बेच दिया जाता या फिर भिक्षावृति में लगा दिया जाता है। एक पूरा रेकेट भिक्षावृति के धंधे में लगा हुआ है।
Tuesday, June 30, 2015
भीड़ और उसका अँधा कानून
कहते है भीड़ का दिमाग नहीं होता, पर पिछले कुछ दिनों में जो घटनाए सामने आई है, उससे तो यही लगता है की भीड़ का दिल भी नहीं होता। पता नहीं इतने बेदर्द कैसे हो जाते है ये लोग, की हम फर्क भी न कर पाये के यह इंसानो का झुण्ड है या फिर जानवरो का!
अभी जो एक घटना सामने आई है वो बिहार के नालंदा की है। यहाँ एक स्कुल में दो बच्चों की मोत हो गयी। जैसे ही लोगों को पता चला पहोच गए स्कूल पे। आचार्य से कुछ कहा सुनी होने के बाद भीड़ ने आचार्य को खूब पीटा। डंडे, घुसे, पैर जिसे जो मन में आया हाथ साफ कर लिया। और थोड़ी देर बाद उस आचार्य की मोत हो गयी।
असली कहानी बाद में सुरु होती है। जब दोनों बच्चों का पोस्टमॉर्टम हुआ, तो पता चला की उन दोनो बच्चों की मोत पानी में डुबने से हुयी थी।
ऐसी घटनाए पुरे देश में रोज बरोज घटती होगी पर कुछ ही सामने आती है। पता नहीं हमारे देश के लोगो को क्या हो गया है। जहा बहादुरी दिखाने की जरुरत होती है वहा ज्यादातर लोग चूहे की तरह बिल में घुस जाते है।
जैसे की एक टीवी चैनल ने थोड़े दिनों पहले एक प्रयोग किया था। एक कार में चीखती हुई लड़की की ऑडियोनो टेप चला के रखी थी। पास से गुजर ने वाले लोको का रिएक्शन कैमरे में कैद किया गया। दस में से एक के अनुपात में ही लॉग बचाने के लिए आगे आए। कुछ लोग हँसते हुए निकल गए और कुछ इसलिए भाग गए की किसी बवाल में नहीं पड़ना चाहते थे। पता नहीं कहा चली जाती है ऐसे वक्त में ऐसी बहादुरी? कहा चला जाता है वो जानवरो का झुण्ड? जो किसी की जान लेने से भी खचकाते नहीं, यह जाने बिना की उसने गुनाह किया है या भी नहीं? किया है तो क्या इतना बड़ा गुना है जो उसे मार दिया जाये? या फिर ये सब कौन होते है इंसाफ करने वाले?
कई सारे सवाल मन में उठते है जब ऐसी घटनाए घटती है।
हम सब को एक चीज का तो अनुभव होगा ही। जब कभी हम बाइक या कार लेके जा रहे हो और अचानक से कोइ लड़की या महिला आपसे आके टकरा जाए तो यकीन मानिये आपकी तो सामत आ जायेगी। चाहे आप की गलती न भी हो। क्योंकि भीड़ को लगता है गलती आपकी ही होगी। भीड़ पूर्वग्रह से पीड़ित होती है। इस लिए वो सही गलत का फैसला नहीं कर पाती।
ये भीड़ का अँधा कानून है जो गूंगा, बहरा, बेदर्द और अँधा होता है। हम ऐसे किसी भीड़ का हिस्सा न बन जाये यह बस खयाल रखे।
आप किसी भी सभ्य समाज वाले देश को देखले। जब भी किसी नागरिक को कोइ घटना गैर क़ानूनी लगती है तो वो तुरंत पुलिस का संपर्क करते है। अपनी जवाबदेही बखूबी अदा करते है वह लोग। हम भी अपनी जवाबदेही समजे। कभी भी कुछ गलत होता हुआ देखे या फिर कोइ भीड़ को अत्याचार करते हुए देखे तो तुरंत पुलिस को खबर करे। हो सकता है आप भी कभी किसी भीड़ के अंधे कानून का शिकार बन जाये! इस लिए सतर्क रहे और दुसरो की मदद करे।
आपके विचार जरूर बताए। धन्यवाद।
Saturday, June 27, 2015
प्यार और हमारा समाज (Honour Killing)
वीर और सीमा एक दूसरे को बहोत प्यार करते थे। यु कहे की एक दूसरे के लिए जीने मरने की कसमे खा चुके थे। प्यार होता ही ऐसा है की लोग अपनी जान तक की परवा नहीं करते, बशर्ते प्यार सच्चा हो।
पता था दोनों को अपने प्यार का अंजाम! पर वह उमीद ही थी जो दोनों के आने वाले कल को लिखने वाली थी।
अलग अलग जाती के थे दोनों। प्यार करते वक्त ये सब कौन सोचता है भला! अरे!भाई प्यार करता कौन है? वो तो बस हो जाता है। इन दोनों को भी हो गया था।
दोनों ने अपने अपने घरवालो को बताया। मानो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। सीमा को तो ऐसे पिटा गया जैसे वह बेटी न होकर कोई भयावह गुनेगार हो। अचानक से जैसे दोनों के लिए अपने ही पराये हो गए। और सीमा के लिए तो मानो कालापानी की सजा ही मिल गई। अरे भाई लड़की थी न वो! और हमारे हिंदुस्तान में लड़की का प्यार करना यानि सबसे कलंकित गुनाह! कितनी घटिया सोच है ना?
दोनों ने भाग के कोर्ट में शादी कर ली। पर दोनों उस बात से अंजान थे की आगे उनकी जिंदगी में क्या तूफान आने वाला है।
सीमा के चाचा का फोन आता है। मिलाना था उसे, धूम धाम से शादी करानी थी दोनों की।
जिस जगह बुलाया था वहा पहोंच गए दोनों, अपने सूनहरे भविष्य की आस आँखों में संजोए हुए। पर ये क्या! सीमा का चचेरा भाई रोहित भाड़े के गुंडों के साथ खड़ा था वहाँ। दोनों को यह बात समजते देर नहीं लगी की उनके साथ छल हुआ है। पर अब भागना नहीं चाहते थे दोनों। कहा जाते भागके? जब अपने ही जान के प्यासे बन बेठे हो।
दोनों ने एकदूसरे के सामने देखा और मन ही मन मानो वह एक दूसरे को कह रहे हो की अब वो कसम पूरी करने का वक्त आ गया है जिसमे हम साथ में जी न सके पर मौत ही सही। कम से कम हमको हमारी मौत से तो जुदा नही कर पाएंगे न यह लोग।
रोहित सीमा को ये कह के जहर की बोतल थमाता है की अगर वीर से सच्चा प्यार है तो पिलो ये ज़हर। कुछ ही देर में वो जहर सीमा के शरीर में था और सीमा ज़मीन पे। अब बारी वीर की थी। पर उसे इतनी आसान मौत कहा नसीब थी भला। वीर को गाड़ी के पीछे बांध के तब तक घसीटा जाता है जब तक वो अपनी सीमा के पास नहीं पहोच गया। यह कहानी सच्ची घटना पे आधारित है।
गुस्सा आता होगा ना रोहित और उनके गुंडों पर? पर रुकिए जरा, क्या सिर्फ वहीँ लोग गुनहगार है क्या? हमारी घटिया सोच भी जिमेदार नहीं है क्या? जो प्यार को पवित्र मानने की जगह सिर्फ संकुचित नजर से ही देखा जाता है।
हम वही लोग है जो किशन कनैया की उन बातो का पाठ करते है जिसमे राधाजी है, रुक्मणीजी का हरण है, गोपिया है। और मानते है इन सब चीजो का पाठ करने से हमारे सारे पाप वैसे धूल जायेंगे, जैसे सर्फ एक्सेल से हमारे गंदे कपडे!
हम उन सब शक्तिपीठ का पूजन करते है, जहा जहा माँ गौरी के टुकड़े उस वक्त गिरे थे जब प्रभु शिव शंकर माँ गौरी के मृत्यु के गम मे उसे उठा क़र हिमालय ले जा रहे थे।
हमारा गुजरा हुआ कल तो काफी भव्य था प्यार करने वालो के लिए। पता नहीं ये गंदकी वर्त्तमान में कहा से आ गई।
कमी हमारी सौच में है। हम बस दिखावा करना जानते है। दरअसल हमारा समाज दंभी है। जी हा बिलकुल सही बोला है मैने। हम बस दुसरो को दिखाना चाहते है की हम कितने पाक साफ है। पर मन में तो कुछ और ही होता है।
इन प्यार के ज्यादातर मामलो में लड़के या लड़की के माता पिता को ज्यादा आपत्ति नही होती है। पर समाज क्या कहेगा या हमारे रिश्तेदारो को क्या मुह दिखाएंगे ये सोच कर ही मामला बिगड़ जाता है। अरे भाई ये समाज है क्या चीज? दिनेश, रमेश, सुरेश या इन जैसे लोगों का वो समुह जिस का काम सिर्फ गपे लड़ना हो। और हम उनसे डरते है।
और हैरानी की बात तो यह है की यही समाज, पता नहीं उस वक्त कहा चला जाता है? जबी honour killing की घटनाए सामने आती है।
हम पश्चिमी संस्कृति को काफी कोसते रहते है। पर एक बात है, वह लोग जैसे है वैसे ही दिखाई देते है। उसकी कई बाते हमें काफी बोल्ड लगती है पर अच्छा है दम्भ नहीं है।
सोच ही है जो हमारे उनके बिच का फर्क है। वरना कभी हम भी सोने की चिड़िया हुआ करते थे। सोच बदलो देश बदलो।
धन्यवाद। जय हिन्द।
आतंकवाद से लड़े कैसे?
थोड़े दिन पहले भारतीय सेना ने नक्सलवादियो को म्यांमार की सिमा में अंदर घुस के मारा।
ये समाचार थोड़े ही घंटो में पुरे देश में पहोच गए। पूरा देश मानो ख़ुशी से झूम उठा। सेना के
जवानो के सर गर्व से ऊचे हो होंगे।
पहेली बार देश ने सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में जाना। पहेली बार दुश्मनो को चूहे की तरह मरते हुए
देखा, वरना अब तक तो सिर्फ जवानो के शहीद होने की खबरे ही आती थी।
चीन को समज में आ गया होगा की अब ये पहले वाला भारत नहीं रहा। यहाँ ईट जवाब बन्दुक से मिलेगा। जो नकस्ली मारे गए है उन को ट्रेनिंग और हथियार चीन ही देता था।
आज भी भारत के लोगो को वो दिन अच्छी तरह याद है जब कसाब और उनके साथी हमारे नागरिको को बेरहमी से सरेआम मार रहा था। हमारे ही घर में आकर हमारे ही नागरिको को मारने की जुर्रत की थी उन लोगो ने। पर हमारे नेता ऐसे बयान दे रहे थे जेसे सारे आतंकी उनके बयान से ही मर जाने वाले हो। पुरे विश्व् में शांति का ठेका मानो हमने ही ले रखा था।
अभी तो ये सिर्फ सुरुआत है। हमें तब तक शांति से नहीं बेठना चाहिए जब तक हिंदुस्तान के दुश्मनो के दिल में हमारा ख़ौफ़ न हो। चाहे पाकिस्तान में हो या अरब देश में उनको मोत सर पे मंडराती दिखनी चाहिए। ये सब कैसे होगा? हमें इसारयल से सीखना होगा।
एक आतंकी इसरायल के दुश्मन देश में जाके छुप के बेठा था। मोसाद जोकि इसरायल की जासूसी संस्था है उसे पता चला। तुरंत एक प्लान बनाके जासूस को रवाना किया। दुश्मन को दुश्मन के देश में जाके मारना था। ये कोई आसान बात नहीं थी। पर उसका पाला भी मोसाद से पड़ा था लिहाजा उस आतंकी की मोत तो निश्चित ही थी।
सुबह का समय होगा शायद। आतंकी के घर का पता लगाने के बात उनके टेलेफोन की वायर काट दी। बाद में टेलीफोन रिपेर कहाने के बहाने वो जासूस घर में घुसा। थोड़ी देर बाद टेलीफोन रिपेर करके वो चला गया। कुछ मिनिट का समय बिता होगा। टेलेफोन की घंटी बजती है। आतंकी जेसे ही फोन उठता है, धड़ाम की आवाज से पूरा इलाका गूंज उठता है और वो आतंकी वही ढेर हो जाता है।
उस टेलेफोन के साथ उस जासूस ने बम लगा के रखा था। ऐसे ही एक एक करके इसरायल अपने दुश्मनो को साफ करता है और उनके दिलो में ख़ौफ़ बिठा देता है। ताकि इसरायल से पंगा लेने से पहले कोई भी आतंकी हजार बार सोचे।
हमारे यहाँ क्या ऐसा करना संभव है? इसका जवाब आपको देना होगा क्योकि हमारे यहाँ आतंकी जैसे शेतानो को भी इंसान मानाने वालो की एक पूरी जमात है। जो उन पुलिस वालो के बारे में भी नहीं सोचते जो जवान एनकाउंटर में शहीद होते है। उसका सही उदाहरण बाटला हाउस एनकाउंटर है।
पर शायद अब हवा ने रुख बदला है। देखते है आगे क्या होता है।
जय हिन्द। वंदे मातरम्।